Monday, August 20, 2018

Sarvnaam

*प्रश्न 1.सर्वनाम कितने प्रकार के होते है?*
अ. 4
ब. 3
स. 8
द.  6✔

*प्रश्न 2. प्रायः सर्वनाम शब्दों का प्रयोग होता है?*
अ. संज्ञा के स्थान पर ✔
ब. क्रिया के स्थान पर
स. विशेषण के स्थान पर
द. कोई नही

प्रश्न 3. 'सामने जो बड़ा सा महल दिखाई दे रहा है , *वह* मेरा है।' शब्द में कौनसा सर्वनाम है?
अ. निश्चय वाचक ✔
ब. अनिश्चय वाचक
स. निजवाचक
द. सम्बंध वाचक

*4. अनिश्यच वाचक सर्वनाम है?*
अ. मैं
ब. वह
स. कोई ✔
द. कौन

*प्रश्न.5 उसे क्या पता, जिसे कभी कोई कष्ट न हुआ हो, कौन-सा सर्वनाम है?*
अ. निश्चय वाचक
ब. निजवाचक
स. प्रश्नवाचक
द. सम्बंध वाचक ✔

6 *जिस सर्वनाम का प्रयोग बातसुनने के लिए होता है वो है*
अ उत्तम पुरुषवाचक
ब मध्यम ✔
स अन्य
द कोई नही

7 *'वह' राम की बकरी है* मै सर्वनाम है
अ अनिश्चय वाचक
ब निश्चय वाचक ✔
स संबंध वाचक
द निजवाचक

*8 'कोई' सर्वनाम है*
अ अनिश्चय वाचक✔
ब निश्चय वाचक
स संबंध वाचक
द निजवाचक

9 *'स्वयं' सर्वनाम है*
अ अनिश्चय वाचक
ब निश्चय वाचक
स संबंध वाचक
द निजवाचक✔

*प्रश्न.10. मोहन प्रकाश जी ...........हिंदी पढ़ाते हैं | रिक्त स्थान की पूर्ति अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम से करो |*
A.मुझे
B.तुम्हें
C.उन्हें ✔
D.हमें

*प्रश्न.11. निम्नलिखित में से किस विकल्प में सभी सर्वनाम पुरुषवाचक हैं |*
A. हम ,तुम,ये,वे,मैं ✔
B. आप, कुछ ,जो,यह
C. जो, कोई, वह, स्वयं
D. मैं, तुम, आप, किसी

*प्रश्न.12. 'सामने जो बड़ा महल दिखाई दे रहा है ,वह मेरा है |' इसमें कौनसा सर्वनाम है ?*
A. पुरुषवाचक
B. निश्चयवाचक✔
C. अनिश्चयवाचक
D. निजवाचक

*प्रश्न.13. किस वाक्य में अनिश्चयवाचक सर्वनाम हैं ?*
A. हम किसी को कुछ नहीं कह सकते|✔
B. मेरा जो भाई तुम्हें मिला था,वह आगे जा रहा है |
C. हम खुद ही इधर आ गए|
D. तुम कॉलेज कब जाओगे ?

*प्रश्न.14. 'तू' सर्वनाम का प्रयोग किस क्रम में नही होता ?*
A. समीपता
B. आत्मीयता
C. अपमान
D. संबंध बताने में✔

*15 सर्वनाम के भेद है*
अ 4
ब 6√
स 5
द  7

*16 उत्तम, मध्यम, अन्य प्रकार सर्वनाम का भेद है*
अ निज वाचक सर्वनाम
ब  सम्बन्ध वाचक सर्वनाम
स पुरुष वाचक √
द  प्रश्न वाचक

*17 राहुल का घर वह है' में सर्वनाम है*
अ पुरुष वाचक
ब निश्चय वाचक √
स अनिश्चय वाचक
द प्रश्न

*18. किसी व्यक्ति,वस्तु, स्थान विशेष के नाम को क्या कहते हैं*
1 संज्ञा✔
2 सर्वनाम
3 विशेषण
4 क्रिया

*19. संज्ञा के कितने भेद होते हैं*
1    2
2    3
3     3✔
4     5

*20. सेलो पेन में संज्ञा हैं*
1 व्यक्ति✔
2  जाति
3  भाव
4 समूह

*21. चाँदी शब्द में संज्ञा हैं*
1 जाति
2 द्रव्य वाचक जाति✔
3 व्यक्ति
4 समूह वाचक

*22. वह स्त्री जो गंगा हैं में संज्ञा हैं*
1 व्यक्ति
2 जाति✔
3 भाव

*23. सर्वनाम के कितने भेद होते हैं*
1  3
2  5
3  6✔
4  4

*24.  मै किस प्रकार का सर्वनाम हैं*
1 उत्तम✔
2 मद्दयम
3 अन्य
4  निज

*25. आप  सब के लिए पूजनीय हैं आप शब्द में सर्वनाम हैं*
1  मद्दयम✔
2 उत्तम
3 अन्य
4  निज
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*26. मोहन प्रकाश जी      हिंदी पढाते हैं  रिक्त स्थान कि पूर्ति अन्य पुरष वाचक सर्वनाम से करो*
1 मुझे
2 तुम्हे
3 उन्हें✔
4 हमे

*27. उसे क्या पता, जिसे कभी कष्ट न हुआ हो, वाक्य में कोनसा सर्वनाम हैं*
1  संबंध✔
2 निज
3 प्रश्न
4 अनिश्चय

*28. यह पुस्तक वही हैं जो मेरे पाठ्यक्रम में हैं, वाक्य में निश्चय वाचक सर्वनाम शब्द हैं*
1 वही✔
2 आप
3  तुम
4  यह

*29. इनमे कोनसा मद्दयम पुरुष वाचक का उदाहरण नहीं हैं*
1 वह✔
2 आप
3 तुम
4 तुम्हारा

*30. यह कोनसा सर्वनाम हैं*
1 पुरुष
2 निज
3 निश्चय✔
4 सम्बन्ध

31-निम्नलिखित मेँ से उतम पुरुष वाचक सर्वनाम हैं ।
(a)तुम्हारा
(b)आप
(c)मेरा ✔
(d)उसका

32. निम्नलिखित मेँ से निश्चय वाचक सर्वनाम हैं ।
(a)यह✔
(b)हमारे
(c)कौन
(d)अपना

33-सर्वनाम के भेद हैं ।
(a)तीन
(b)चार
(c)पाँच
(d)छः ✔

34-अनिश्चय वाचक सर्वनाम का उदाहरण हैं ।
(a)वहां कौन खड़ा हैं ।
(b)कोई द्वार पर खड़ा हैं ।✔
(c)जी करेगा सो भरेगा
(d)वह तो राम की गया हैं ।

35-सम्बंध वाचक सर्वनाम बताइये ।
(a)कोई
(b)कौन
(c)जो ✔
(d)वह

36-पुरुष वाचक सर्वनाम कितने हैं ।
(a)तीन ✔
(b)चार
(c)पाँच
(d)सात

37-मुझे किस प्रकार का सर्वनाम हैं ।
(a)उतम पुरुष ✔
(b)मध्यम पुरुष
(c)अन्य पुरुष
(d)इनमें से कोई नहीँ

38- उतम पुरुष बताइये
(a)मैं ✔
(b)तुम
(c)वे
(d)यह

39-बोलने वाले के लिये जिन सर्वनामों का प्रयोग होता हैं , उन्हें क्या कहते हैं ?
(a)मध्यम पुरुष
(b)अन्य पुरुष
(c)उतम पुरुष✔
(d)इनमें से कोई नहीँ

Thursday, July 6, 2017

चंदा मामा अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध



चंदा मामा दौड़े आओ,
दूध कटोरा भर कर लाओ।
उसे प्यार से मुझे पिलाओ,
मुझ पर छिड़क चाँदनी जाओ।

मैं तैरा मृग-छौना लूँगा,
उसके साथ हँसूँ खेलूँगा।
उसकी उछल-कूद देखूँगा,
उसको चाटूँगा-चूमूँगा।


फूल और काँटा -अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

हैं जन्म लेते जगह में एक ही,
एक ही पौधा उन्हें है पालता,
रात में उन पर चमकता चांद भी,
एक ही सी चांदनी है डालता। 

मेह उन पर है बरसता एक सा,
एक सी उन पर हवाएँ हैं बहीं,
पर सदा ही यह दिखाता है हमें,
ढंग उनके एक से होते नहीं। 

छेदकर काँटा किसी की उंगलियाँ,
फाड़ देता है किसी का वर वसन,
प्यार-डूबी तितलियों का पर कतर,
भँवर का है भेद देता श्याम तन। 

फूल लेकर तितलियों को गोद में,
भँवर को अपना अनूठा रस पिला,
निज सुगन्धों और निराले ढंग से,
है सदा देता कली का जी खिला। 

है खटकता एक सबकी आँख में,
दूसरा है सोहता सुर शीश पर,
किस तरह कुल की बड़ाई काम दे,
जो किसी में हो बड़प्पन की कसर।


कर्मवीर अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं
रह भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहीं
काम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नहीं
भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं
हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले
सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले ।

आज करना है जिसे करते उसे हैं आज ही
सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही
मानते जो भी हैं सुनते हैं सदा सबकी कही
जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही
भूल कर वे दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं
कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं ।
जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं नहीं
काम करने की जगह बातें बनाते हैं नहीं
आज कल करते हुए जो दिन गँवाते हैं नहीं
यत्न करने से कभी जो जी चुराते हैं नहीं
बात है वह कौन जो होती नहीं उनके लिए
वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिए ।
व्योम को छूते हुए दुर्गम पहाड़ों के शिखर
वे घने जंगल जहाँ रहता है तम आठों पहर
गर्जते जल-राशि की उठती हुई ऊँची लहर
आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लपट
ये कँपा सकती कभी जिसके कलेजे को नहीं
भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कहीं ।


अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' का जीवन परिचय

अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' द्विवेदी युग के प्रमुख कवि है।

अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'  जी का जन्म 15 अप्रैल 1865 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के निजामाबाद में हुआ। 

 हिंदी साहित्य सम्मेलन ने उन्हें एक बार सम्मेलन का सभापति बनाया और विद्यावाचस्पति की उपाधि से सम्मानित भी किया था l


हरिऔध जी ने गद्य और पद्य दोनों ही क्षेत्रों में रचनायें कीं-

उपन्यास
ठेठ हिन्दी का ठाठ
अधखिला फूल
महाकाव्य
प्रियप्रवास
वैदेही वनवास

मुक्तक काव्य
चोखे चौपदे
चुभते चौपदे
कल्पलता
बोलचाल
पारिजात
हरिऔध सतसई

नाटक
रुक्मणी परिणय
प्रदुम्न विजय


आलोचना
कबीर वचनावली
साहित्य सन्दर्भ
हिन्दी भाषा और साहित्य का विकास।







एक तिनका अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

मैं घमंडों में भरा ऐंठा हुआ,
एक दिन जब था मुंडेरे पर खड़ा।
आ अचानक दूर से उड़ता हुआ,
एक तिनका आँख में मेरी पड़ा।

मैं झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा,
लाल होकर आँख भी दुखने लगी।
मूँठ देने लोग कपड़े की लगे,
ऐंठ बेचारी दबे पॉंवों भागने लगी।

जब किसी ढब से निकल तिनका गया,
तब 'समझ' ने यों मुझे ताने दिए।
ऐंठता तू किसलिए इतना रहा,
एक तिनका है बहुत तेरे लिए।









प्रियप्रवास अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'  जी द्वारा रचित
"प्रियप्रवास" एक महाकाव्य जिसमे विरहकाव्य के तत्त्व है। 


प्रियप्रवास की रचना 1909 से 1913 'हरिऔध'  जी ने की l

प्रियप्रवास की रचना खड़ी बोली में की गयी है l

प्रियप्रवास की भाषा संस्कृतनिष्ठ हिन्दी  है। 

प्रियप्रवास में कुल सत्रह (17) सर्ग हैं l

कथावस्तु-

प्रियप्रवास की कथावस्तु का आधार श्रीमद्भागवत का दशम स्कंध हैl

प्रियप्रवास में श्रीकृष्ण के जन्म से लेकर उनके बड़े होने और उसके बाद उनके ब्रज से मथुरा को प्रवास और लौट आने का वर्णन है l

 प्रियप्रवास दो भागों में विभाजित है। पहले से आठवें सर्ग तक की कथा में कंस के निमंत्रण लेकर अक्रूर जी का ब्रज में आना वर्णित है और वे श्रीकृष्ण को लेकर मथुरा चले जाते है।

नौवें सर्ग से लेकर सत्रहवें सर्ग तक की कथा में कृष्ण, अपने मित्र उद्धव को ब्रजवासियों को सांत्वना देने के लिए मथुरा भेजते है।


जब भगवान ब्रज छोड़ कर मथुरा चले जाते हैं तो दुखी यशोदा जी का वर्णन प्रियप्रवास में इस प्रकार किआ है –

प्रिय प्रति वह मेरा प्राण प्यारा कहाँ है?
दुःख जल निधि डूबी का सहारा कहाँ है?
लख मुख जिसका मैं आजलौं जी सकी हूँ।
वह ह्रदय हमारा नैन तारा कहाँ है?



लोक-सेवा की भावना- हरिऔध जी ने कृष्ण को ईश्वर रूप में न दिखा कर आदर्श मानव और लोक-सेवक के रूप में दिखाया है। कृष्ण कहते हैं –

विपत्ति से रक्षण सर्वभूत का,
सहाय होना असहाय जीव का।
उबारना संकट से स्वजाति का,
मनुष्य का सर्व प्रधान धर्म है।


राधा का चरित्र भी हरिऔध जी ने नए तरीके से पेश किआ है –

राधा विश्व की प्रेमिका हैं वे वियोग का दुख सह कर भी वे लोक-हित की कामना करती हैं-

प्यारे जीवें जग-हित करें, गेह चाहे न आवें।

आज्ञा भूलूँ न प्रियतम की, विश्व के काम आऊँ
मेरा कौमार-व्रत भव में पूर्णता प्राप्त होवे।