यशोधरा
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण
गुप्त जी द्वारा रचित एक प्रसिद्ध महाकाव्य है l
यशोधरा का प्रकाशन सन् 1933 ई. में हुआ।
यशोधरा में गद्य-पद्य मिश्रित है इसलिए इसे चम्पू काव्य भी कहा जाता है।
यशोधरा में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने गौतम बुद्ध के गृह
त्याग की कहानी को केन्द्र में रखा है।
इसमें गौतम बुद्ध की
पत्नी यशोधरा की विरह की पीड़ा को विशेष रूप से दर्शाया गया है l
सखि, वे मुझसे कहकर जाते,
कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथ-बाधा ही पाते?
मुझको बहुत उन्होंने माना
फिर भी क्या पूरा पहचाना?
मैंने मुख्य उसी को जाना
जो वे मन में लाते।
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
स्वयं सुसज्जित करके क्षण में,
प्रियतम को, प्राणों के पण में,
हमीं भेज देती हैं रण में -
क्षात्र-धर्म के नाते।
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
यशोधरा महाकाव्य में गुप्तजी नें कहा -
अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी।
आँचल में है दूध और आँखों में पानी।
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