वैदेही वनवास अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' द्वारा रचित एक खण्डकाव्य है।
वैदेही वनवास में
कुल अठारह (18) सर्ग हैं।
कुल अठारह (18) सर्ग हैं।
वैदेही वनवास में
हरिऔध जी ने
साधारण बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है।
हरिऔध जी ने
साधारण बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है।
वैदेही वनवास का प्रकाशन 1940 में किया।
वैदेही वनवास में करुण रस की प्रधानता है।
वैदेही वनवास की कथावस्तु का आधार रामकथा है।
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