भारत भारती की प्रस्तावना में गुप्त
जी ने लिखा-
यह बात मानी हुई है कि भारत की पूर्व
और वर्तमान दशा में बड़ा भारी अन्तर है। अन्तर न कहकर इसे वैपरीत्य कहना चाहिए। एक
वह समय था कि यह देश विद्या, कला-कौशल और सभ्यता में संसार का
शिरोमणि था और एक यह समय है कि इन्हीं बातों का इसमें शोचनीय अभाव हो गया है। जो आर्य
जाति कभी सारे संसार को शिक्षा देती थी वही आज पद-पद पर पराया मुँह ताक रही है! ठीक
है, जिसका जैसा उत्थान, उसका वैसा हीं पतन! परन्तु क्या
हम लोग सदा अवनति में हीं पड़े रहेंगे? हमारे देखते-देखते जंगली जातियाँ
तक उठकर हमसे आगे बढ जाएँ और हम वैसे हीं पड़े रहेंगे?
भारत भारती में तीन खण्ड हैं –
अतीत खण्ड,
वर्तमान खण्ड तथा
भविष्यत् खण्ड।
अतीत खण्ड-
अतीत खण्ड का मंगलाचरण इस प्रकार है -
मानस भवन में आर्यजन जिसकी उतारें
आरतीं-
भगवान् !
भारतवर्ष
में गूँजे हमारी भारती।
हो भद्रभावोद्भाविनी वह भारती हे
भवगते।
सीतापते! सीतापते !!
गीतामते!
गीतामते !! ॥१॥
वर्तमान-खंड
वर्तमान-खंड में गुप्त जी ने देश की दुर्दशा
को यह कहकर दर्शाया है -
हम आज क्या से क्या हुए,
भूले हुए हैं हम इसे,
है ध्यान अपने मान का,
है ध्यान अपने मान का,
हममें बताओ अब किसे!
पूर्वज हमारे कौन थे,
पूर्वज हमारे कौन थे,
हमको नहीं यह ज्ञान भी,
है भार उनके नाम पर दो अंजली जल-दान भी।
है भार उनके नाम पर दो अंजली जल-दान भी।
भविष्यत्-खंड-
भविष्यत्-खंड में राष्ट्रकवि ने समस्या
समाधान के हल खोजने का प्रयास किया है।
हम हिन्दुओं
के सामने आदर्श जैसे प्राप्त हैं-
संसार में किस जाती को, किस ठौर वैसे प्राप्त हैं,
भव-सिन्धु में निज पूर्वजों के रीति से ही हम तरें,
यदि हो सकें वैसे न हम तो अनुकरण तो भी करें।
संसार में किस जाती को, किस ठौर वैसे प्राप्त हैं,
भव-सिन्धु में निज पूर्वजों के रीति से ही हम तरें,
यदि हो सकें वैसे न हम तो अनुकरण तो भी करें।
No comments:
Post a Comment